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बुराइयों में बढती दिलचस्पी

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          क्यो हर शक्स में बुराईयाॅ ही देखते हो तुम     अच्छाइयों पर परदा गिराकर ख़ामियाँ गिनाते तुम।     बस गुस्ताख़ियो के क़िस्से ही उछालते तो हो तुम     कमजोरियों के पुतले है हम-सब ओर तुम।।     किसी की कुव्वतों के चरचे सुन न पाते तुम     ज़ेहन में जलन के अंगारे ही सुलगाते हो तुम।     ढलती साँझ से होती रातों में अंधेरा ही देखते तुम     फ़लक पर चमकते तारों की रोशनी न देखते तुम।।     छीटाकशी की आदतों को दिल में पालते हो तुम     चापलूसी की अदाओ पर ही मर जाते हो तुम।     अच्छाइयों बुराइयों से कोई वास्ता न रखते तुम     बस माखोल उड़ाने की बाज़ीगारी जानते हो तुम।।     कभी हाथ दिल पर रखकर खुद से पूछो तो तुम     बुराइयों के क़िस्से की कहानी क्यों गढते हो तुम।     जो बुरे से बुरे इन्सान में अच्छाईयों को ढूंढो तुम     तो खुदा का असली चमकता कोहिनूर बनोगे तुम।।     अगर बुराइयों की जड़ों को ही खोदते रहे ना तुम   ...

भाता तुझ पर लज्ज़ा का श्रंगार,bhaata tujh per lazza ka shringar

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  बाॅलों का गज़रा हो या माँथे की कुमकुम कानों के झुमके हो या ऑखों का काजल चाहे रख लो एक तरफ बाज़ारो के सब श्रंगार पर इन सब पर भारी है तेरी लज्ज़ा का श्रंगार वो तेरा पलकों को झुकाकर खुद ही शर्माना बिखरती हँसी को तेरा दोनों हाथों से छुपाना तुझे देखकर हया से तेरे रंगों का निखरना जो शरमाकर हया से तेरे अँधरो का भीगना चाहे रख लो एक तरफ दुल्हन के सोलह श्रंगार पर तुझ पर भाता है बस लज्जा का ही श्रंगार Reference to contexts- ज़िन्दगी की असल कहानियों  का वो नायक जो अपनी प्रेमिका पर लज्ज़ा की भंगिमाओं का क़ायल रहता है। उस नायक की लज्ज़ा के मायने को अभिव्यक्ति करती कविता। दोस्तों प्रेमिका, नायिका, स्त्री, का वास्तव में लज्ज़ा उसका नैसर्गिक आभूषण है। उसके बिना तो बाज़ारी आभूषण अधूरे ही हैं। UNDER COPY RIGHT ACT 1957 वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। under copyright act  KULDEEP singh negi confidential ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,p...

मुझे छोड़कर जाने वाली,mujha chor kar janne wali

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  we gives a  total  deep poetry shyari  in our content. just express of feeling. whatever happen in life.  deep poetry &shyari  express all aspect of life.some time we happy, some time we sad. thus all expression of life can explore our deep poetry. total  dee p  po e try  shy a ri  purpose to convey all beauty of thought.  total deep poetry  shyar मुझे  छोड़कर जाने वाली दिल तोड़कर जाने वाली। तेरे ओझल होने से मन खाली मुड़कर कभी पीछे देखो ना ज़रा।। तेरे इंतज़ार में गुज़रे हर लम्हे ज़िन्दगी के रंगों के धागे उतरते गये। बचा था बस बदनसीबी का काला रंग तेरी परछाँईयों के सायों में गुज़रने लगे।। मेरी वफ़ाओ संग खेलने वाली लम्हो में अपना रंग बदलने वाली। नज़रअंदाज़ किया तेरी बदमाँशियो के किस्से वो ही मेरे खून के टपकते आँसू बने।। दुश्वारियो में मुझे छोड़ने वाली मेरे मातम की कहानी बनाने वाली। तुझ पर एतबार से ही ख़ाक हुये सब सपने पूरी उम्र ज़िन्दगी वीरान सा होने लगे।। मोत की शेज सुलादेगी मुझे एकदिन उम्र भर तेरा ही इंतज़ार करते कर...

चाय है चुस्की के लिये,जाम है महफ़िल के लिये

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चाय है चुस्की के लिये, जाम है महफ़िल के लिये। मेरी महफ़िल हो जो तुम तुम हो बस हमारे लिए।। पलके हैं जो ऑखों के लिये ऑखें हैं नज़ारो के लिये। मेरी ऑखों का नज़ारा हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। ओट हैं जो लब्ज़ो के लिये लब्ज़ हैं जो फ़साने के लिये। मेरे फ़साने की किताब हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। आशिक़ी हैं दिल के लिये दिल हैं जो धड़कने केलिये । मेरी दिल की धड़कन हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। तेरे संग मैं ही तो हूँ मेरे संग जो तुम्ही तो हो। साँसें हैं जो जीने के लिये मेरा जीवन हो बस तुम पूरी ज़िन्दगी बस तुम्हारे लिये।।   Total Deep poetry Shyari (प्रेम की गहराईयों तक , मासूम अहसास तक को महसूस करने वाले हर दिल को समर्पित) ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है।  इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी  प्रकार audio,video,print etc माध्यम  से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर  प्रकाशित करने पर   कड़ी  कानूनी कार्रवाई  की जायेगी।  All right reserved.No part of this  content may not copied,reproduce ,adapted . In any way print electronic  aud...

कुछ चंद भर किताबें पढ़कर kuch chnd bhar kitabe padhkar

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कुछ चंद भर किताबें पढकर लगता है बहुत कुछ जानते हो तुम  ये कुछ भी न है तुम्हारा जानना बस लिखी बातों को दोहराते हो तुम ज़ेहन में ज़रा कभी खुद से तो पूछो खुद के बारे में कितना जानते हो तुम अक्स की परछाई को कितना जानते तुम रूह की गहराई को कितना जानते तुम अपनी साॅसों की वफाओ को कितना जानते तुम दिलो में लूह भरने की शिराओं को कितना जानते तुम क्यो चमकते फ़लक पर चाॅद संग तारों के काफ़िले क्यों बदलते मौसमो के रंगों के सिलसिले क्यों उफ़नते मन में तूफानों से ज़लज़ले सदियों से होते दिन रात को कितना जानते हो तुम दुनिया की मोटी मोटी किताबों के पोथो को रटकर बस तोतो की जुबान अपने लब्ज़ो पर लाते हो तुम ज़िन्दगी में अगर खुद से कुछ भी न जाने हो तुम तो रटी रटाई बातों को ज्ञान समझ इतराते हो तुम जिस जिस्म को अपना समझते हो तुम उसे बनाने वाले खुदा को कितना जानते हो तुम जिस पेड़ की छाँव में गुज़रा तेरा पूरा बचपन उसकी जड़ों की गहराईयों को कितना जानते तुम अगर इन सभी को दूसरे के लब्जो से ही जाने तुम  तो दुनिया भर की पोथियों को पढकर कुछ भी न जाने तुम ज़िन्दगी की ज़ुस्तज़ू में खुद से जितना भी जाने तुम ...

मुहब्बत से रहो हर मज़हब के लोग

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मज़हब की आड़ में नफ़रत कब तक फैलाओगे। आँग बनकर सुलगा जो अगर इन्सानियत के रिश्ते ख़ाक हो जायेगे।। जो वोट की ओट में सेकते रोटियाॅ बन गया इंसान इनकी फसती मछलियाँ। ये लोग ज़ेहन में बस भरते जहरीली गोलियाँ इनके जालो मे फसकर कब तक खेलोगे खूनी होलियाॅ।। खुदा के अनेको नामों पर कब तक मंदिर मस्जिदो को तोड़ोगे। सभी मज़हबो का जब एक मालिक किस दिन रूह में महसूस कर पाओगे।। मज़हब के ठेकेदारों ने खेली जो चालाकियाॅ इंसान को इंसान से तोड़ने की सीखी बारीकियाॅ। दुनिया का कोई भी मजहब सिखाता न लड़ाईयाॅ इनकी म़ोकापरस्ती मे छुपी सफ़ेदपोशो से नजदीकियाॅ।। बसा है एक ही खुदा हर दिल में मज़हबो की कश्मकश से कब बाहर आओगे। इबादतो का सलीका सबका है अलग अगर कायनात के एक रहनुमा को कब पहचानोगे।। बस इतना तो समझ लो हम-तुम-सब मज़हब की पैंतरेबाजियों से खुदा है नाखुश। सभी धर्मों के लोग आपस में प्यार से रहे अगर मुहब्बत की इन्हीं सीड़ियों से खुदा तक पहुँच जाओगे।।   विशेष संदर्भ- यह कविता पूरे विश्व के परिप्रेक्ष्य मे सभी मज़हब के लोगों में आपसी भाई-चारा,प्यार मुहब्बत के साथ रहने हेतु लिखी गयी है। दुनिया के सभी मज़हब एक दूसरे के लि...

एक रात की बात,Ek Raat ki Baat

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रात किसी का ख़्वाब बनाती है नयी सुबह का आगाज़ बनाती है इसकी जुस्तजू मे डूबकर करे मेहनत उसको रातों- रात स्टार बनाती है दिनभर की कश्मकश के बाद फ़ुरसत के लम्हो मे सुकून देती है कुव्वत रखने वालो को उकसाती है बुझिलो को रात उलझाती भी है थक-थक कर चूर हुये लोगों की ऑखों में प्यारी निंदियाॅ लाती है ये उकसाती है,  सुलझाती है उलझाती भी है, बहकाती है छुपी सी ताकत का आभास कराती है फ़र्क इतने भर का है मेरे दोस्तों  तुम्हारी इल्तज़ा का उफनता नशा बेमानी का है या ईमानदारी का रातों में मेहनत करने वालों को ये निखरता सा नूर बनाती  है देखता जो इसमें अंधेरा ही अंधेरा उनके ख़्वाबो को राख बनाती है ढूढते जो अंधेरे में उम्मीद के जुगनू उनको तराशा हुआ हीर बनाती है।   वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर कानूनी कार्रवाई की जायेगी।  All right rese...

कभी कुदरत से आशिक़ी तो कर

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कभी कुदरत से आशिक़ी तो कर इसकी महफ़िलो से दोस्ती तो कर। बोझिल मन को इसमें ओझल तो कर कभी हदय की ऑखे खोल महसूस तो कर।। आता कोई जब इसकी पनाहों में थककर होती है चंद लम्हो में सारी थकान ग़ायब। ज़िन्दगी के  सब गहरे ज़ख्मो की ये दवा कभी कुदरत की फ़िज़ाओ की आरज़ू तो कर।। जीवन का वो हर फ़लसफ़ा छिपा जो इसमें सारी किताबों में नहीं मिलेगा वो पढकर।। भटकते-टूटते रूहों को बनती ये रहनुमा कभी कुदरत की गोद में कश्मकश तो दफ़न कर।। मशीनी दुनिया में रह गया तू  अब उलझकर मोबाइल,टीवी की लतों में ठहरा सिमटकर। आपाधापी की दोड़ में गिर जायेगा लुढ़ककर  कभी इन सब कूचों से बाहर तो आजा निकलकर।।  {Kuldeep singh negi  Poetry}   वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर कानूनी कार्रवाई की जायेगी।  All right reserved.No part of this content may not ...

तेरी लज्ज़ा खुद तेरा श्रंगार बनाती है, teri Lajja khud tera Shringar banati hai

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तेरी लज्ज़ा खुद तेरा श्रंगार बनाती है  सोलह श्रंगारो को वीरान बनाती है।  हया की ओड़नी जो डाली है तन पर  हजारों दीवानों को तेरा क़ायल बनाती है।।  सूरज की पहली किरण दमकती तेरे माँथे पर  चमकती सी कुमकुम को बदरंग बनाती हैं।  तेरी झुकती पलके ढलती साॅझ  बनाती है  हजारों ऑखो के काजल को ख़ाक बनाती है।।     हवा के झोकें उड़ाती है जब तेरी चुनरियाॅ को  तेरी बढती हया तेरे गाॅलो को लाल बनाती है।  शरमाती ऑखों को छुपाती तेरी जुल्फ़ो के घेरे  फ़ूलो के लटकते गजरो को बेकार बनाती है।।  बारिश की बूँदें निखरती है जब तेरे तन  पर  तेरी महकशी लाखों शबाव को राख बनाती है।  शर्म को बिखेरती तेरी खिलखिलाहट की झंकार  ज़माने की सारी महफिल को सुनसान बनाती है।।        {Kuldeep singh negi  Poetry}   वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार ...

लम्ह़ो में ज़ी ले ज़रा,Lamho mein je le jara

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लम्ह़ो में ज़ी ले ज़रा  अपने को फुर्सत दे ज़रा।  भाग मत मशीनों की तरह  ठहर कर ज़ी ले ज़रा।।  दोलत के पीछे क्यों मरा  खुशियों के लम्ह़े मत गवाॅ।  पैसों का नशा कभी न रुका  जितना है उसमें खुश क्यों न रहा।।  शोहरत की होड़ मे तू दोड़ चला  हुई हसरत पर खालीपन ही रहा।  ज़िन्दगी भर बाज़ार को समेटा  फिर भी तेरा घर वीरान ही रहा।।  दिन रात का सिलसिला यूँ गुज़रा  तुझे ढलती उम्र का पता नहीं चला।  बुढ़ापे की दहलीज पर जैसे पहुँचा  जवानी के लम्हो को न खरीद सका।।  खुशी का आपाधापी से नही वास्ता  इस अहसास को पहचान तो ज़रा।  हर दिन को ज़ी लो तुम इस तरह  जैसे एक एक लम्हा पूरा जीवन बना।। भागादोड़ी में इन्सान को बोझ ही मिला अगर सुकून न रहा तो क्या ख़ाक मिला। सिकंदर उम्र भर लूटकर खजाने भरता रहा जीता पूरा संसार फ़िर भी खाली ही गया।। वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी...