बुराइयों में बढती दिलचस्पी

क्यो हर शक्स में बुराईयाॅ ही देखते हो तुम अच्छाइयों पर परदा गिराकर ख़ामियाँ गिनाते तुम। बस गुस्ताख़ियो के क़िस्से ही उछालते तो हो तुम कमजोरियों के पुतले है हम-सब ओर तुम।। किसी की कुव्वतों के चरचे सुन न पाते तुम ज़ेहन में जलन के अंगारे ही सुलगाते हो तुम। ढलती साँझ से होती रातों में अंधेरा ही देखते तुम फ़लक पर चमकते तारों की रोशनी न देखते तुम।। छीटाकशी की आदतों को दिल में पालते हो तुम चापलूसी की अदाओ पर ही मर जाते हो तुम। अच्छाइयों बुराइयों से कोई वास्ता न रखते तुम बस माखोल उड़ाने की बाज़ीगारी जानते हो तुम।। कभी हाथ दिल पर रखकर खुद से पूछो तो तुम बुराइयों के क़िस्से की कहानी क्यों गढते हो तुम। जो बुरे से बुरे इन्सान में अच्छाईयों को ढूंढो तुम तो खुदा का असली चमकता कोहिनूर बनोगे तुम।। अगर बुराइयों की जड़ों को ही खोदते रहे ना तुम ...