मैं अंगारो मे जला, तूफानो में बहा

मै अंगारो में जला,तूफानो में बहा
राह के पत्थरो में, ठोकर खाता गया।
जिन्दगी के मुश्किलों में कभी न हिला
मैं परायो से नहीं,अपनो से ठगा।
मै तंगी में पला,काटो पर चला
घाव जिस्म के,अश्को से भरता गया।
धोखे की जंजीरो से खुद जकड़ता गया
मैं दुश्मनो से नही, दोस्तों से छला।
मैं मुहब्बत में उजड़ा, तन्हा रातो में जगा
किसी के इंतज़ार में, जिन्दगी भर कुवारा रहा।
दिल के जस्बातो को, ऑग से जलाता रहा
मैं जुदाई में नहीं , खुदाई में मरा

( जिन्दगी में संघर्ष , किसी भी अपने से धोखे खाये हर साफ दिल को समर्पित, मै शब्द उस इन्सान की अभिव्यक्ति से है जो इन हालातो से गुजर चुका है)।
841यह रचना amarujalakavya मंच में प्रकाशित हो चुकी है।
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