बरसात की आधी रात में , ( Deep poetry) rainly night

बरसात की आधी रात में 
दिल का इजहार करने 
हाथो में गुलाब लिये
बारिश की बोछारो से बचाते
किसी तरह मैं आया उसके घर।
पर मैरे पैरों की छपछपाहट ने
जगाया उसके उखड़े बाप को
खोला गेट का किवाड़ गुस्से में
मुझे देख हाथ पकड़ा जोर से
मै सपककर काँप गया डर से
शोर मचाया बड़ी  जोर से
देखो आया चोर अहाते की छोर से
 इतने में वो आयी अन्दर से
देखा मुझे बड़ी अचरज से
गहरी नाराजगी,मायूसी थी
उसकी मासूम भोली आखो में!
जो मैं आया इज़हार करने
उससे अजीब लम्हातो में
देखा उसने जो गुलाब हाथो में
गुस्सा प्यार दोनों था उसकी आँखों में
मेरी निगाहे रुकी थी उस पर
उसकी आँखों में दिखी प्यार की चाहत
बाप समझ गया सब मेरी कहानी
तो लट्ठ मारकर हुई मेरी तुड़ाई!
उसने आॅसुओ की धार टपकाई
किसी तरह अपने बेरहम बाप से 
हाथ जोड़कर मेरी जान छुड़ाई
फिर क्या था अब बयाॅ करने को
बाप ने उस पर कसकर थप्पड़ लगाई!
 वो फिर फूट फूटकर रोती रही
कभी मैंने आॅसू न देखे थे
उसके मुस्कराते हुए चेहरे पर
मेरे कापते हाथो से छूट गया!
अपनी मुहब्बत का गुलाब
भीगकर टूटने लगी थी सब
गुलाब की महकती पंखुड़ियाॅ
लगी गहरी चोट मेरे दिल में
गुस्ताखियाँ सारी दिल की थी
जो कदमो को रोक न पायी!
बस निकली मेरे दिल ए दर्द से
एक कचोटती सी चुभती आवाज
ऐसी बरसात कभी भी न आये!
( एक गध्यात्मक कविता ,  जो दरअसल में किसी नायक की अपनी प्रेमिका से प्यार इज़हार करने की अनोखी परिस्थिति से है।  बरसात की देर रात को जब नायक प्रेमिका से प्यार का इज़हार करने उसके घर जाता है, तो जो परिस्थितियाॅ नायक के विपरीत होती है कि क्या सोचकर गया ?और क्या हो गया?, एक अनछुये जस्बातो को बयाॅ करती  सरल अभिव्यक्ति)
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