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चाँदनी रातों की गुमसुम तन्हाई में,Chandni ratoo ki gumsum tanhai mein

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    चाँदनी रातों की गुमसुम तनहाई मे     तेरे अक़्स की पलकों में परछाई बनी।     टकटिकाई सी नज़र थी  सितारों पर     मुझे वो लम़्हे मेरी सदियों सी लगने लगी।।     लाखों मिन्नतो से टूटा दुवाओ का सितारा     मुक़़म्मल हुआ सारी रज़ाओ का ठिकाना।।     सिर सजदा हुआ उस नूर के इनायत का     हुई आज़ मुझ पर इन लम़्हो में ये रहमत     बिखरेती दुवाओ से जो तुम मेरी हो गई।।। । Every line of content dedicated to those person who always waited for his/her lover/beloved. If recently content has written male side. But it is also a near female side. Finally to explore compassion, mercy in the romance love. I tried deeply to explore Untouching aspect of Human sensation.            By kuldeep Singh Negi,Poetry Writer         Every line of Content is original work of writer.All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way prin...

तेरी साँसो की खुशबू की महक,tere Sanson ki Khushboo ki mahak

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    तेरे साँँसो की खुशबू की महक़     मेरे रूह को निखरता नूर बनाती है।     तेरे ओठो की सरगम की चहक     मेरे दिल को खनकता साज बनाती है।।     हवाओं संग खेलती तेरी रेशमी जुल्फ़े     मेरे झुलसते जिस्म को छाँव बनाती है।     तेरी कलाईयों के कंगनो की छनछन     कुदरत का ख़नकता संगीत बनाती है।।     तेरे कज़रारे मासूम पलकों का उठना     सर्दियों की ग़ुनगुनाती धूप बनाती है।     शर्माकर जो तेरे अधरों का भीग जाना     लज़्जा की भंगिमा का श्रंगार बनाती है।।     तेरे साथ गुज़रे जो भी कीमती हर-पल     मेरी सब ख़्वाहिशो का त्योहार बनाती है।     तड़फ तड़फ कर तेरी रूह तक पहुँचना     मेरी बंजर ज़मीन को सदाबहार बनाती है।।     लाखों दुवाओ के असर से अगर हो तू मेरी     मेरी ज़िन्दगी को जीते ही ज़ी जन्नत बनाती है।।।।  Special reference of poetry - this poetry specially dedicated for unique person . Who said that- if you has not loved, ...

भाता तुझ पर लज्ज़ा का श्रंगार,bhaata tujh per lazza ka shringar

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  बाॅलों का गज़रा हो या माँथे की कुमकुम कानों के झुमके हो या ऑखों का काजल चाहे रख लो एक तरफ बाज़ारो के सब श्रंगार पर इन सब पर भारी है तेरी लज्ज़ा का श्रंगार वो तेरा पलकों को झुकाकर खुद ही शर्माना बिखरती हँसी को तेरा दोनों हाथों से छुपाना तुझे देखकर हया से तेरे रंगों का निखरना जो शरमाकर हया से तेरे अँधरो का भीगना चाहे रख लो एक तरफ दुल्हन के सोलह श्रंगार पर तुझ पर भाता है बस लज्जा का ही श्रंगार Reference to contexts- ज़िन्दगी की असल कहानियों  का वो नायक जो अपनी प्रेमिका पर लज्ज़ा की भंगिमाओं का क़ायल रहता है। उस नायक की लज्ज़ा के मायने को अभिव्यक्ति करती कविता। दोस्तों प्रेमिका, नायिका, स्त्री, का वास्तव में लज्ज़ा उसका नैसर्गिक आभूषण है। उसके बिना तो बाज़ारी आभूषण अधूरे ही हैं। UNDER COPY RIGHT ACT 1957 वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। under copyright act  KULDEEP singh negi confidential ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,p...

चाय है चुस्की के लिये,जाम है महफ़िल के लिये

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चाय है चुस्की के लिये, जाम है महफ़िल के लिये। मेरी महफ़िल हो जो तुम तुम हो बस हमारे लिए।। पलके हैं जो ऑखों के लिये ऑखें हैं नज़ारो के लिये। मेरी ऑखों का नज़ारा हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। ओट हैं जो लब्ज़ो के लिये लब्ज़ हैं जो फ़साने के लिये। मेरे फ़साने की किताब हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। आशिक़ी हैं दिल के लिये दिल हैं जो धड़कने केलिये । मेरी दिल की धड़कन हो तुम तुम हो बस हमारे लिये ।। तेरे संग मैं ही तो हूँ मेरे संग जो तुम्ही तो हो। साँसें हैं जो जीने के लिये मेरा जीवन हो बस तुम पूरी ज़िन्दगी बस तुम्हारे लिये।।   Total Deep poetry Shyari (प्रेम की गहराईयों तक , मासूम अहसास तक को महसूस करने वाले हर दिल को समर्पित) ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है।  इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी  प्रकार audio,video,print etc माध्यम  से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर  प्रकाशित करने पर   कड़ी  कानूनी कार्रवाई  की जायेगी।  All right reserved.No part of this  content may not copied,reproduce ,adapted . In any way print electronic  aud...

तेरी लज्ज़ा खुद तेरा श्रंगार बनाती है, teri Lajja khud tera Shringar banati hai

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तेरी लज्ज़ा खुद तेरा श्रंगार बनाती है  सोलह श्रंगारो को वीरान बनाती है।  हया की ओड़नी जो डाली है तन पर  हजारों दीवानों को तेरा क़ायल बनाती है।।  सूरज की पहली किरण दमकती तेरे माँथे पर  चमकती सी कुमकुम को बदरंग बनाती हैं।  तेरी झुकती पलके ढलती साॅझ  बनाती है  हजारों ऑखो के काजल को ख़ाक बनाती है।।     हवा के झोकें उड़ाती है जब तेरी चुनरियाॅ को  तेरी बढती हया तेरे गाॅलो को लाल बनाती है।  शरमाती ऑखों को छुपाती तेरी जुल्फ़ो के घेरे  फ़ूलो के लटकते गजरो को बेकार बनाती है।।  बारिश की बूँदें निखरती है जब तेरे तन  पर  तेरी महकशी लाखों शबाव को राख बनाती है।  शर्म को बिखेरती तेरी खिलखिलाहट की झंकार  ज़माने की सारी महफिल को सुनसान बनाती है।।        {Kuldeep singh negi  Poetry}   वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार ...