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एक इनकार की वजह,ek inkaar ki vajah

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    मेरे इज़हार का जवाब अभी तक न आया     उसके इनकार का बेज़ार समझ न पाया।    जमाने से उसके लब्ज़ो पर मेरा ही नाम आया     वज़हो की वज़ह को बड़ी देर से समझ पाया।     दिल से करती थी वो मुझसे सदियों से प्यार     मेरी ग़रीबी का दस्तूर उसे देर से समझ आया।।।।     {CONTENT IS ORIGINAL WORK OF WRITER}  All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way print electronic audio video etc medium  Under  copyright act 1957. ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर   कड़ी  कानूनी कार्रवाई की जायेगी।    वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। under copyright act 1957 KULDEEP singh negi confidential we gives a  total  deep poetry shyari ...

वफादारी का कत्ल vafadari ka katal

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we gives a  total  deep poetry shyari  in our content. just express of feeling. whatever happen in life.  deep poetry &shyari  express all aspect of life.some time we happy, some time we sad. thus all expression of life can explore our deep poetry. total  dee p  po e try  shy a ri  purpose to convey all beauty of thought.  total deep poetry  shyari      वफादारी का कत्ल करते -करते  वो खुद का दामन साफ़ करने लगे  कमवक्त अपने दाग पोछते -पोछते निशान गददारी के हाथों पर छोड़ते दिखे।   दोस्ती उनकी महफिल तक ही थी    जो शराबी प्यालो में एक होने लगे।      वक्त आया जब उनका दुशवारियो का     तो दीवार को काॅधा बनाकर वो रोने लगे।                                                                       ...

ख्वाहिश

ख्वाहिश थी खुशी की महफिल से। वक्त यू बदला, लिपटी तनहाई मुझसे। कब बने अपने पराये,मतलब निकलने से। बची थी बस मेरी परछाई,जो बात करने से। बचा न कोई मेरा अपना, जो दे काॅधा रोने पे। लुट गये सब अरमान, चटके काॅच ख्वाबो के।