मेरे जख्मो की नुमाॅईश
मेरे जख्मो की नुमाॅईश
इस कदर महफिल में होने लगी।
कि बार बार सुनने की फरमाइश होने लगी
बज रही तालियो की गड़गड़ाहट होने लगी।
महफिल में मुझे देखकर
अनजान बनने की फितरत होने लगी।
कि सुलगाकर मेरे जख्मो के किस्से
मुझसे ही बया करने की गुजारिश होने लगी।
( जमाने में दूसरे के दुःख दर्द पर रस लेने की नियत को शायरी की अभिव्यक्ति )
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