मुझे छोड़कर जाने वाली,mujha chor kar janne wali

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मुझे  छोड़कर जाने वाली
दिल तोड़कर जाने वाली।
तेरे ओझल होने से मन खाली
मुड़कर कभी पीछे देखो ना ज़रा।।
तेरे इंतज़ार में गुज़रे हर लम्हे
ज़िन्दगी के रंगों के धागे उतरते गये।
बचा था बस बदनसीबी का काला रंग
तेरी परछाँईयों के सायों में गुज़रने लगे।।
मेरी वफ़ाओ संग खेलने वाली
लम्हो में अपना रंग बदलने वाली।
नज़रअंदाज़ किया तेरी बदमाँशियो के किस्से
वो ही मेरे खून के टपकते आँसू बने।।
दुश्वारियो में मुझे छोड़ने वाली
मेरे मातम की कहानी बनाने वाली।
तुझ पर एतबार से ही ख़ाक हुये सब सपने
पूरी उम्र ज़िन्दगी वीरान सा होने लगे।।
मोत की शेज सुलादेगी मुझे एकदिन
उम्र भर तेरा ही इंतज़ार करते करते ।
मेरी सुलगती चिताओं को देखते देखते
राख बनती तक़दीर को देखना ज़रा ।।
पर तू किसी फुरसत के लम्हो में
रूह तक अहसास करना ज़रा ।
करता था तुझसे कोई जो इश्क
वो भी एक इन्सान था ज़रा।।।।
विशेष संदर्भ- छोड़कर, तोड़कर, बदमाँशियो, इत्यादि अल्फ़ाजो का प्रयोग केवल उनको/उसको किया गया है। जिन्होंने जिन्दगी मे प्रेम के फ़लसफ़े को नहीं समझा।जो मोक़ापरस्ती के साथ अपने रिश्ते लिवासों की तरह बदलते गये। हक़ीकत में आज़ प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुॅचने वाले हज़ारो में चंद लोग ही मिलेगें दोस्तों। यह कविता उन मासूम दिलों से निकलती कचोटती टींस की अभिव्यक्ति है, जिनके यक़ीन की दीवारों को धोखे के खंजरो से तोड़ा है दोस्तों। खासकर यह कविता सुशान्त सिंह राजपूत के साथ जो भी हुआ। उनके काफी नज़दीक तक पहुँचती है।

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