लम्ह़ो में ज़ी ले ज़रा,Lamho mein je le jara

लम्ह़ो में ज़ी ले ज़रा
 अपने को फुर्सत दे ज़रा।
 भाग मत मशीनों की तरह
 ठहर कर ज़ी ले ज़रा।।

 दोलत के पीछे क्यों मरा
 खुशियों के लम्ह़े मत गवाॅ।
 पैसों का नशा कभी न रुका
 जितना है उसमें खुश क्यों न रहा।।

 शोहरत की होड़ मे तू दोड़ चला
 हुई हसरत पर खालीपन ही रहा।
 ज़िन्दगी भर बाज़ार को समेटा
 फिर भी तेरा घर वीरान ही रहा।।

 दिन रात का सिलसिला यूँ गुज़रा
 तुझे ढलती उम्र का पता नहीं चला।
 बुढ़ापे की दहलीज पर जैसे पहुँचा
 जवानी के लम्हो को न खरीद सका।।

 खुशी का आपाधापी से नही वास्ता
 इस अहसास को पहचान तो ज़रा।
 हर दिन को ज़ी लो तुम इस तरह
 जैसे एक एक लम्हा पूरा जीवन बना।।

भागादोड़ी में इन्सान को बोझ ही मिला
अगर सुकून न रहा तो क्या ख़ाक मिला।
सिकंदर उम्र भर लूटकर खजाने भरता रहा
जीता पूरा संसार फ़िर भी खाली ही गया।।

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