लोग तो कुछ ना कुछ कहेंगे,log tho kuch na kuch kahenge

लोग तो कुुुछ न कुुुछ कहेेंगे तुझ पर इल्ज़ाम ही मढते रहेगे। नज़रअंदाज़ करके तू बढ आगे वो दुनिया की नज़रो में गिराते रहेगें।। जगा ले चाहे तू लाँख उम्म़ीद के दिये उनकी ऑखों में सदा चुभते रहेगें। जो भटककर तू दूर हो मंज़िलो से वो ऐसी साजिश बार बार करते रहेंगे।। इनकी परवाहो से तू कभी न डर गाँठ बाँधकर कह खुद की रूह से। मुट्ठी तानकर हमेशा आगे ही बढ़ेंगे तुम कुछ करो या न करो भी अगर फ़िर भी वो न जाने क्या क्या कहेंगे।। दूसरो की फ़िजूल भरी बातों-2 से थोड़ा भी तू डगमगाया जो अगर। मुकामो के फ़लक छूने की बात छोड़ो तो तुम ज़मीन पर भी खड़े न हो पाओगे।। Reference of context - this poem convey the message to innocent people, who want to do new things in their life, but m...