हो गयी तू किसी ग़ैर की, फिर भी न जाने अपनी सी लगी
फिर भी न जाने अपनी सी लगी।
थी नाराज़गियाँ तेरी बेवज़ह की
जो तुझे मेरी रूह से दूर ले जाने लगी।।
दिल में तूने खिलायी मुहब्बत की कलियाॅ
अब तलक मुरझा गयी अरमानो की डालियाॅ
ज़िन्दगी का साज बनी जो तेरे घर की गलियाँ
पर तूने ही क्यों तोड़ी मेरे ज़स्बातो की बलिया
रह गयी ज़ेहन में परछाई तेरे अक्स की
वो अपनी फूटी हुई तक़दीर बनने लगी
बदनसीबी मेरे अधूरे मुक़म्मल इश्क की
जो किसी ग़ैर से तेरी शहनाई बजने लगी
मेरी मुफ़लिसी पर तूने उठाये जो सवालियाॅ
उछाली सिर्फ थहाकों की हज़ारो कव्वालिया
यक़ीनो की दीवारों पर मारी चुभती कटारियाँ
इश्क के नाम पर जो खेली बदली सी रंगोंलियाँ
सवाँर दी ज़िन्दगी किसी ग़ैर की
मुझे अब हर महफ़िल वीरान लगी
ज़रूरत थी शायद तुझे अमीरज़्यादो की
जो मेरी मुहब्बत पर भारी पड़ने लगी
अमीरो के साथ तेरी तक़दीर सवरने की
कानों मे गूँजती कहानियाँ बुरी तो न लगी
गलतियाँ भर थी तेरे रूह तक डूबने की
न चाहते हुए भी दिलो दिमाग में बसती गयी
हमेशा के लिये हो गई तू किसी ग़ैर की
फिर भी न जाने क्यों अपनी सी लगी
Reference to contexts- this poetry closed with all those person, who has loved deeply. Due to many circumstance like communication gape,caste discrimination, they could not journey with their beloved. My dear Friend it poetry specially dedicated for those person, who loved deeply any one. The aim of writing this poetry explore untouching aspect of LIVE. It does not matter that your true loved was finally success or failure. आखिर में दोस्तों जिसने भी truthful love किया , वो चाहकर भी अपने अतीत की स्मृतियो को भूल नहीं सकता, अवचेतन मन में उम्र भर ये गहरा बस जाता है। उसकी पाक भावना जानती है कि उसकी beloved आज किसी की अमानत है, पर जब ऑखो के झरोको मे उसकी तस्वीर कभी धुधंली नहीं होती है तो तब वो कल्पना में अपनी सी लगती हैं। ये कविता 20 -25 साल के युवाओं से लेकर 60-70 साल के बुजुर्गों की अधूरी प्रेम कहानी की अभिव्यक्ति करती कविता है।
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Very nice poetry Anita Sharma
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