मतलब भर के रिश्ते,Maatlabh bher ke rishte
खुद केे ग़मो की सुुध न करने से
दूसरे के सुकून ज़माने को चुभने लगे।
लोग अब लब्ज़ो की मीठी छुरियो से
अपनो को ही दग़ा न जाने क्यों देने लगे।
मतलब भर से ही सब रिश्ते बनने लगे
मासूम बस शतरंज के मुहरे बन पिटने लगे।
ये लेखक की अपनी मौलिक रचना है।
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बहुत अच्छा लिखा है आगे मेहनत करते रहो
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आगे मेहनत करते रहो।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रयास
जवाब देंहटाएंVery touchable thought by our writers
जवाब देंहटाएंWe need to this type of poetry
जवाब देंहटाएं❤️ heart tauching
जवाब देंहटाएंpoem
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंVery heart touching
जवाब देंहटाएंVery nice
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