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ख्वाहिश

ख्वाहिश थी खुशी की महफिल से। वक्त यू बदला, लिपटी तनहाई मुझसे। कब बने अपने पराये,मतलब निकलने से। बची थी बस मेरी परछाई,जो बात करने से। बचा न कोई मेरा अपना, जो दे काॅधा रोने पे। लुट गये सब अरमान, चटके काॅच ख्वाबो के।