दोहरे मन के ख़्याल,dohre maan ka khayal

क्या करे ओर क्या न करे के उलझनो के पेचों के बीच ज़िन्दगी के नाज़ुक लम़्हो में जब कोई इन्सान फसता है। बेचैन मन के दो राहों के बीच दिलों दिमाग बोझिल होता है। दुविधा के गहरे बादलों के सायों में उम़्मीद का सूरज ओझल होता है पल पल चलती दो बातों के बीच उलझ -उलझकर हताश होता है करने, न करने के फ़ैसलो में ही सारा वक़्त बेकार हो जाता है। दोहरे ख़्यालो के जंजालो के बीच ध्यान की गहराई में जो उतरता है छँट जाते हैं सारे दुविधाओं के बादल तब जीवन का सही फ़ैसला नज़र आता है। CONTENT IS ORIGINAL WORK OF WRITER} All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way print electronic audio video etc medium Un...