एक इनकार की वजह,ek inkaar ki vajah

मेरे इज़हार का जवाब अभी तक न आया उसके इनकार का बेज़ार समझ न पाया। जमाने से उसके लब्ज़ो पर मेरा ही नाम आया वज़हो की वज़ह को बड़ी देर से समझ पाया। दिल से करती थी वो मुझसे सदियों से प्यार मेरी ग़रीबी का दस्तूर उसे देर से समझ आया।।।। {CONTENT IS ORIGINAL WORK OF WRITER} All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way print electronic audio video etc medium Under copyright act 1957. ये लेखक की अपनी मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जायेगी। वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। under copyright act 1957 KULDEEP singh negi confidential we gives a total deep poetry shyari ...