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एक इनकार की वजह,ek inkaar ki vajah

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    मेरे इज़हार का जवाब अभी तक न आया     उसके इनकार का बेज़ार समझ न पाया।    जमाने से उसके लब्ज़ो पर मेरा ही नाम आया     वज़हो की वज़ह को बड़ी देर से समझ पाया।     दिल से करती थी वो मुझसे सदियों से प्यार     मेरी ग़रीबी का दस्तूर उसे देर से समझ आया।।।।     {CONTENT IS ORIGINAL WORK OF WRITER}  All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way print electronic audio video etc medium  Under  copyright act 1957. ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर   कड़ी  कानूनी कार्रवाई की जायेगी।    वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में  ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। under copyright act 1957 KULDEEP singh negi confidential we gives a  total  deep poetry shyari ...

रिश्तों के टूटते यक़ीन में,ristho ke Tuthathe yakin mein

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    अब रिश्तों के टूटते यक़ीन में     अहसाँसो की कोंपलें सूखने लगे।     पुस्तैनें घरोंदों के किवाड़ो में     अब जालो के हिज़ाब बनने लगे।     जख़्मो की हरी  डाँलियो पर     दग़ाओ के जहरीले साँप लिपटने लगे।     सच्चे प्यार-मुहब्बत की तलाश में     बस रेत से तेल निचोड़ने लगे।     दिल से बहती मुहब्बत की दरियाँ में     अब हवस के गंदे कीड़े पलने लगे।।।।         ये लेखक की अपनी  मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ मरोड़कर प्रकाशित करने पर   कड़ी  कानूनी कार्रवाई की जायेगी।  All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way print electronic audio video etc medium  Under  copyright act 1957.   To see all poetry  Type Kuldeep Negi Poetry on Google ............................................Thanks वैधानिकच...

जलता झुलसता सा जीवन,Jalta julastha sa Jeevan, DEDICATED FOR LABOUR LIFE

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    सुलगती सी जून की गर्मियों मेंं     मजदूर के झुलसते तन को देखा।     बनाये थे जिसने हजारों आशियाँने     सर्द रातों में उसे ठिठुरते हुये देखा।।       संग कहा थी उसके सुखो की महफिल     बस अपने ही नसीब को कोसते देखा।     नज़ारो के सबसे बदत्तर नज़ारो मे जो     मेरी आँखों ने उसकी घुटन को ही देखा।।     पेसों की बढती किल्लतो के दोर में     मुझसे नहीं पूछो क्या मैने नहीं देखा।     रहीसज़्यादो ने छोड़ी थी जो जूठन     उसे मुह का निवाला बनाते हुये देखा।।        मेरी हैसियत की चंद कोशिशों भर में     किया थोड़ाजो मगर,एक खुशी को देखा।     बीता जो भी पल मेरा उसके साथ    खामोशी लब्ज़ो में गहरे जख्मो को देखा।।     वक्त ए ज़रूरत पर अपने ही साथ देखा     पर खुद के अरमान को जलाते देखा।     तमन्ना तो उसकी थी एक छोटे घर की     पर फुटपाथ पर जिदंगी गुजारते ही देखा।।     मुहब्बत के दो लब्...

चाँदनी रातों की गुमसुम तन्हाई में,Chandni ratoo ki gumsum tanhai mein

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    चाँदनी रातों की गुमसुम तनहाई मे     तेरे अक़्स की पलकों में परछाई बनी।     टकटिकाई सी नज़र थी  सितारों पर     मुझे वो लम़्हे मेरी सदियों सी लगने लगी।।     लाखों मिन्नतो से टूटा दुवाओ का सितारा     मुक़़म्मल हुआ सारी रज़ाओ का ठिकाना।।     सिर सजदा हुआ उस नूर के इनायत का     हुई आज़ मुझ पर इन लम़्हो में ये रहमत     बिखरेती दुवाओ से जो तुम मेरी हो गई।।। । Every line of content dedicated to those person who always waited for his/her lover/beloved. If recently content has written male side. But it is also a near female side. Finally to explore compassion, mercy in the romance love. I tried deeply to explore Untouching aspect of Human sensation.            By kuldeep Singh Negi,Poetry Writer         Every line of Content is original work of writer.All right reserved.No part of this content may not copied,reproduce,adapted . In any way prin...

रूपों की बहती सुन्दरता का,rupoo ki bahatee sundarta ka

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               रूपों की बहती सुुन्दरता का                 अक़्स चाहे न भी हो अग़र।              भावनाओं के फ़ूलों की म़हक             हर दिल में तो खिलनी चाहिए।।              लिव़ासो से तुम्हारी अदाओं का             हर दिल जो दीवाना हो अग़र।             पर लब्ज़ो के सलीके का असर             हर रूह मे उतरना तो चाहिए।।             हैसियत मे तुम्हारे मुकामो का            सारा जहाँ सजदा हो जो अग़र।            उठा लो किसी को फ़लक तक             एक खुदाई तो होनी ही चाहिए।।            ज़िन्दगियो की ज़ुस्तज़ूओ का            उम़्दा तजुरबा है जो तेर...

तेरी साँसो की खुशबू की महक,tere Sanson ki Khushboo ki mahak

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    तेरे साँँसो की खुशबू की महक़     मेरे रूह को निखरता नूर बनाती है।     तेरे ओठो की सरगम की चहक     मेरे दिल को खनकता साज बनाती है।।     हवाओं संग खेलती तेरी रेशमी जुल्फ़े     मेरे झुलसते जिस्म को छाँव बनाती है।     तेरी कलाईयों के कंगनो की छनछन     कुदरत का ख़नकता संगीत बनाती है।।     तेरे कज़रारे मासूम पलकों का उठना     सर्दियों की ग़ुनगुनाती धूप बनाती है।     शर्माकर जो तेरे अधरों का भीग जाना     लज़्जा की भंगिमा का श्रंगार बनाती है।।     तेरे साथ गुज़रे जो भी कीमती हर-पल     मेरी सब ख़्वाहिशो का त्योहार बनाती है।     तड़फ तड़फ कर तेरी रूह तक पहुँचना     मेरी बंजर ज़मीन को सदाबहार बनाती है।।     लाखों दुवाओ के असर से अगर हो तू मेरी     मेरी ज़िन्दगी को जीते ही ज़ी जन्नत बनाती है।।।।  Special reference of poetry - this poetry specially dedicated for unique person . Who said that- if you has not loved, ...