पलकों से निकले यूँ ऑसू,palko se nikle aasu
![]() |
palko se nikle aasu |
पलकों से निकले यूँ ऑसू
गिरती रही धार गाॅलो पर।
साथ बह गया आँखों का काज़ल
फैल गया पूरा गुलाबी गाॅलों पर।।
पोंछा रूमाल से पलकों के आँसू
तो फैल गया काज़ल माथे पर।
चमकती सी कुमकुम हुई काली
रंग गया काला रंग पूरे हाथो पर।।
सिसकते सिसकते निकले ऑसू
गिरती रही धार रेशमी ओड़नी पर।
सारी रात भर थम न पाये ऑसू
ओड़नी पर ऑसुओ के निशान बने।।
लाज़ को छिपा नही पाये ऑसू
तेरी यादों की तड़फ में गिरते रहे।
काज़ल माँतम सा बना ऑखो पर
सारी काली रात ही हमसफ़र हुये।।
सैलाब बनकर निकले यू ऑसू
लम्हो में तुमसे बिछड़ जाने पर।
भीग गया वो तेरा दिया रूमाल
शायद जो दिया मेंरे ग़म पोंछने में।।
नज़रे ठहरी जो मेरी आँयने पर
उतरता गया चेहरे का दमकता रंग।
सब अपना श्रंगार वीरान सा हुआ
मेरा तन जलती अंगार सा हुआ।।
कोई नही आया मेरा हाल पूछने
बस तेरे इंतज़ार मे बिखरने लगी।
उफ़नती लहरों सी थी खुद बेचैन
तेरी याद मे बस निकलते रहे ऑसू।।
वैधानिकचेतावनी। इस कविता का किसी भी रूप में ऑडियो,वीडियो , किसी भी रूप में व्यावसायिक उपयोग हेतु लेखक की अनुमति अनिवार्य है। ये लेखक की मौलिक रचना है। इसे किसी भी रूप में इसका किसी भी प्रकार audio,video,print etc माध्यम से या इसके किसी भी भाग को तोड़ कर प्रकाशित करने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। Under Copy Right Act
Bahut khoobsurat
जवाब देंहटाएं