वक्त के साथ बदलते लोग , vakt ke saith bhadulte log

मुझे ज़िन्दगी मे  जब  ग़म मिले 
 सुकून देने वाले बहुत कम मिले।
  तसल्ली तो हजारों मुझे देते गये
 पर साथ देने वाले बहुत कम मिले।।

महफ़िल में सब मेरे संग हो गये
शोहरत मे बढ़ते काफ़िले दिखे।
वक्त के जलज़लो में वो नदारद हुये
खून के ऑसू  पोछने वाले बहुत कम दिखे।।

जिस्म पर लिपटे ग़म अपने से लगे
भरोसे के काबिल,वफ़ा का कत्ल करने लगे।
तूफानो में सब अपने साथ छोड़ते गये
पहुचे साहिलो में हम लोग रहनुमा बनने लगे।।

अहसानो को न जाने अपने भूलने लगे।
फरामोश होकर बस कीमत लगाने लगे।
जिम्मेदारियों के किस्से हजारों ने कहे।
फर्ज का कर्ज उतारने वाले बहुत कम दिखे।।

( मुझे अल्फाज से कविता शुरू होती है, जो कि उस हर शक्स के जस्वातो को बया करती है, जो कि जिन्दगी के मुश्किलों मे अपने के साथ छोड़ने की मन मे रह गयी टीस की अभिव्यक्ति है।  दोस्तों आप सब को मेरी रचना कैसे लगती हैं। टिप्पणी जरूर करें। अगर आपको पसंद आती है तो follow जरूर करें। ताकि हम अपनी रचनाओं के माध्यम से जनमानस के अनछुये जस्वातो को आपके लिये लाते रहे

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टिप्पणियाँ

  1. Bhot hi khubsurt line he bhai aap ki mai hamesa aap ki sabhi sayri and sbhi khania padhta hun or mujhe inte jar rhta he ki aap agli line kb likho ge bhai or bi likho kuch ishi trha istrha ki line padh kr dil ko bhoskun milta he buot bhot sukria aap ka jo aap ne hmary liye hmary mtlb ki line likhi mai dil se sukria aada krta hun aap ka or agli line ka intjar rhe ga

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  2. उत्तर
    1. Negi g aap se gujarish he hindi me zwab de bdi mherbani hogi aap ki

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    2. Priya dost hum future mein nayi Kavita shyari prakshit kargne. Hamari rachana ki srahana Karne ke liya sukriya

      हटाएं

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